सेवङ राजपुरोहित कि कुलदेवी - बिसहस्त माता
यह जोधा तथा सूंडा राठोडो इके पिरोयत है । इनका कथन
है कि इनके पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे । इनके कथन के
अनुसार इनके बडेरे देपाल कन्नोज से राव सियाजी
के साथ आये थे। सियाजी ने इनको अपना पुरोहित
बनाया और वे मारवाड के पिरोयतो में सगपन करके इस कौम में
मिल गये ।
मारवाड़ में ज्यों ज्यों राठौड़ो का राज बढ़ता गया सेवड़ पिरोयतो को
भी उसी तरह ज्यादा से ज्यादा शासन
गांव मिलते रहे और उनकी औलाद भी
राठौड़ो के अनुसार बहुत फैली । आज क्या
जमीन, क्या आमदनी और क्या
जनसंख्या में सेवड़ पिरोयत कुल पिरोयतो से बढ़े हुये है।
देपाल जी से कई पुश्त पीछे
बसंतजी हुए । उनके दो बेटे
बीजड़जी और बाहड़जी
थे बीजड़जी मलीनाथ
जी के पास रहते थे । कंरव जगमाल
जी ने उनको बीच में देकर अपने काका
जेतमाल जी को सिवाने से बुलाया और दगा से मार
डाला । बीजड़जी इस बात से खेड़
छोड़कर बीरमजी के पास चले गये ।
राव चूंडाजी ने जब सम्वत् 1452 में मंडोर का राज
लिया तो उनकी या उनके बेटे हरपाल को गेवां बागां
और बड़ली वगैरा कई गांव मंडोर के पास-पास शान
दिये। बाहड़जी के कूकड़जी के
राजड़जी हुए जिनकी औलाद के शासन
गांव साकड़िया और कोलू परगने शिव में है। हरपाल के पांच बेटे
थे:-
1. रूद्राजी - इनके तीन बैटे
खींदाजी,
खींडाजी और कानाजी थे ।
खींदाजी के खेताजी,
खेताजी के रायमल, रायमल के पीथा
जी जिसकी औलाद में शासन गांव
बड़ली परगने जोधपुर है। रायमल का बेटा उदयसिंघ
था । उसके दो बेटे कूंभाजी और भारमल हुए ।
कूम्भाजी की औलाद का शासन गांव
खाराबेरा परगने जोधपुर में और भारमल की औलाद
का शासन गांव धोलेरया परगने जालौर में है।
खींडाजी की औलाद का
शासन गांव टूकलिया परगने मेड़ता में है। कानाजी
की औलाद में शासन गांव पाचलोडिया, चाँवणडिया,
प्रोतासणी और सिणया मेड़ता परगने के हैं।
2. दूसरा बेटा हरपाल का देदाजी,
जिसकी औलाद के शासन गांव बावड़ी
छोटी और बड़ी परगने
फलौदी, ओसियां का बड़ा बास और बाड़ा परगने
जोधपुर है।
3. तीसरा दामाजी । ये राव
रिड़मलजी के साथ चितौड़ में रहते थे । जिस रात कि
सीसोदियो ने रावजी को मारा और राव
जोधाजी वहां से भागे तो उनका चाचा
भीभी चूंडावत ऐसी
गहरी नींद में सोया हुआ था कि उसको
जगा-जगा कर थक गये मगर उसने तो करवट भी
नहीं बदली । लाचार उसको
वहीं सोता हुआ छोड़ गये । दामाजी
भी उनके पास रहा । दूसरे दिन
सीसोदियो ने भीम को पकड़ कर कतल
करना चाहा तो दामाजी ने कई लाख रूपये देने का
इकरार करके उसको छुड़ा दिया और आप उसकी
जगह कैद में बैठ गये । कुछ दिनों पीछे जब
सीसोदियो ने रूपये मांगे तो कह दिया कि मैं तो
गरीब ब्राह्मण हूं । मेरे पास इतने रूपये कहा ।
यह सुनकर सीसोदियो ने दामाजी को छोड़
दिया। जोधाजी ने इस बंदगी में चैत बद
15 सम्वत् 1518 के दिन गयाजी में उनको बहुत
बड़ा शासन दिया जिसकी आमदनी दस
हजार रूपये से कम नहीं थी ।
दामाजी के जानशीन तिंवरी
के पुरोहितजी कहलाते हैं। गांव तिंवरी
जोधपुर परगने के बड़े-बड़े गांवो में से एक नामी गांव
नौ कोस की तरफ है।
दामाजी पिरोयतो में बहुत नामी हुए हैं
और उनकी औलाद भी बहुत
फैली कि एक लाख दमाणी कहे जाते
हैं । यानि एक लाख मर्द औरत बीकानेर, मारवाड़,
ईडर, किशनगढ़ और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतों में सन् 1891
तक थे । इनके फैलाव की हद उत्तर
की तरफ गांव नेरी इलाके
बीकानेर जाकर खत्म होती है और
यही पिरोयतो के सगपन की
भी हद थी जिसके वास्ते मारवाड़ में
यह औखाणा मशहूर है ‘‘गई नैरी सो
पाछी नहीं आई बैरी’’ यानि
जो औरत नैरी में ब्याही गई फिर वह
पाछी नहीं आई क्योंकि जोधपुर से सौ
डेढ़ सौ कोस का फासिला है और इसी वजह से
पिरोयतो की औरतों में ढ़ीट लड़कियों को
नैरी में ब्याहने की एक
धमकी है। वे कही है कि तू जो
कहना नहीं करती है तो तुझको
नैरी में निकालूंगी कि फिर
पीछी नहीं आ सके ।
दामाजी के छः बेट े थे!
1. नाडाजी (ना औलाद) जिसने जोधपुर के पास
नाडेलाव तालाब बनाया ।
2. बीसाजी । इन्होंने
बीसोलाव तालाब खुदाया था । इसका बेटा
कूंपाजी और कूंपाजी के
तीन बेटे, केसूजी, भोजाजी,
और मूलराज जी । केसोजी
की औलाद में शासन गांव घटयाला परगने शेरगढ़ है।
भोजाजी की औलाद में शासन गांव
तालकिया परगना जेतारण है। मूलराज जी ने
मूलनायक जी का मन्दिर जोधपुर में और एक बड़ा
कोट गांव भैसेर में बनवाया जिससे वह भैसेर
कोटवाली कहलाता है। इनके बेटे पदम
जी के कल्याणसिंघ जी जिन्होने
तिंवरी में रहना माना । इनके बड़े बेटे रामसिंघ, उनके
मनोहरदास, उनके दलपतजी थे । ये बैशाख बद 9
सम्वत् 1714 को उज्जैन की लड़ाई में काम आये
जो शहजादे औरंगजेब और महाराजा श्री जसवंत
सिंह जी में हुई थी ।
दलपतजी के अखेराज महाराज श्री
अजीतसिंह जी के त्रिके में हाजिर रहे
।
अखेराज के सूरजमल, उनके रूपसिंघ, उनके कल्याणसिंघ,
उनके महासिंघ (खोले आये) महासिंघ के दोलतसिंघ, दोलतसिंघ के
गुमानसिंह जो आसोज सुदी 8 सं. 1872 को आयस
देवनाथ जी के साथ किले जोधपुर में नवाब
मीरखांजी के आदमियों के हाथ से काम
आये, उनके नत्थूसिंघ, उनके अनाड़सिंघ उनके भैरूसिंघ उनके
हणवतसिंघ जो अब तिंवरी के पिरोयत है। इनका
जन्म सं. 1923 का है। दूसरे बेटे अखेराज के
केसरीसिंघ जो अहमदाबाद की लड़ाई में
काम आये। इनके दो बेटे प्रताप सिंह, अनोपसिंघ थे । प्रतापसिंघ
की औलाद का शासन गांव खेड़ापा परगने जोधपुर है
जहां रामस्नेही का गुरूद्वारा है। अनोपसिंह
की औलाद का शासन गांव दून्याड़ी
परगने नागौर है। तीसरे बेटे अखेराज के जयसिंघ
की औलाद का शासन गांव जाटियावास परगने
बीलाड़ा है। चौथे बेटे महासिंघ के चार बेटे सूरतसिंह,
संगरामसिंह, लालसिंह, चैनसिह की औलाद का शासन
गांव खीचोंद परगना फलोदी है। पांचवे
बेटे विजयराज के बड़े बेटे सरदार सिंघ की आलौद
का शासन भेंसेर कोतवाली दूसरे बेटे राजसिंह
की औलाद का भेंसेर कूतरी परगने
जोधपुर, तीसरे और चौथे बेटे जीवराज
और बिशन सिंह की औलाद का आधा-आधा गांव
भावड़ा परगने नागौर शासन है। छटा बेटा महासिंघ का तेजसिंह
सूरजमल के खोले गया, सातवें बेटे फतहसिंघ का छटा बंट गांव
भावड़ा में है।
कल्याणसिंह के दूसरे बेटे गोयंददास जी औलाद का
शासन गांव ढडोरा परगने जोधपुर और तीसरे बेटे
रायभान की औलाद का शासन गांव भटनोका परगने
नागौर है।
मूलराज के दूसरे बेटे महेसदास की औलाद का
शासन गावं चाड़वास परगने सोजनत में है तीसरे बेटे
छताजी की औलाद का शासन गांव
धूड़यासणी परगने सोजत में हैं चौथे रायसल का
मालपुरया पगरने जेतारण परगने में हैं छोटे भानीदास
का गांव भेाजासर बीकानेर में है।
3. तीसरा बेटा दामाजी का
ऊदाजी जिसकी औलाद के शासन गांव
बिगवी और थोब परगने जोधपुर में है।
4. चौथा बेटा दामाजी का बिज्जाजी
जिसकी औलाद में शासन गांव घेवड़ा परगने जोधपुर,
रूपावास परगने सोजत और मोराई परगने जैतारण है।
5. दामाजी का पांचवा पुत्र पिरोयत
विक्रमसी यह जोधपुर के राव जोधाजी
के कंवर बीकाजी के साथ 01
अक्टूबर 1468 को जोधपुर से (बीकानेर) नये
राज्य को जीतने के लिए रवाना हुए इनका वंश
अपनी वीरता एवं शोर्य के लिए रियासत
बीकानेर के स्तम्भ रहे और इनको पट्टे में मिले
गांव इस रियासत में है। विक्रमसी का पुत्र
देवीदास 29 जून 1526 को जैसलमेर में सिंध के
नवाब से युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए
इनको इस वीरता एवं जैसलमेर पर अधिकार करने
के फलस्वरूप गांव तोलियासर एवं 12 अन्य गांव पट्टे में मिले
एवं पुरोहिताई पदवी मिली ।
देवीदास के पुत्र लक्ष्मीदास 12 मार्च
1542 को जोधपुर के राव मालदेव के बीच युद्ध में
काम आये बड़े पुत्र किशनदास को उनकी
वीरता के लिए थोरी खेड़ा गांव पटटे में
मिला जिनके पोते मनोहर दास ने इस गांव का नाम किसनासर रखा।
किसनदास के पुत्र हरिदास ने हियादेसर बसाया । सूरसिंह के
गद्दी पर बैठने के बाद तोलियासर के पुरोहित मान
महेश की जागीर जब्त
करली इसके विरोध में मान महेश ने गढ़ के समाने
अग्नि में आत्मदाह कर लिया जहां अब सूरसागर है इसके बाद
से तोलियासर के पुरोहितो से पुरोहिताई पदवी निकल
गई लगभग 1613 में यह पदवी कल्याणपुर के
पुरोहितो को मिली । हरिदास के
लिखमीदास व इनके गोपालदास व इनके पसूराम
जी हुए इनके पुत्र कानजी को आठ
गांव संवाई बड़ी, कल्याणपुर, आडसर,
धीरदेसर, कोटड़ी, रासीसर,
दैसलसर और साजनसर पट्टे में मिले इनके सात पुत्रों का वंश
अब भी इन गांवो में है। बीकानेर राज्य
के इतिहास में सन् 1739 में जगराम जी, सन्
1753 में रणछोड़ दास जी, सन् 1756 में जगरूप
जी, सन् 1768 में ज्ञान जी सन्
1807 में जवान जी, सन् 1816 में जेठमल
जी, सन् 1818 में गंगाराम जी व सन्
1855 में प्रेमजी व चिमनराम का
जीवन वीरता एवं शौर्य के लिए
प्रसिद्ध रहा है। कल्याणपुर के टिकाई पुरोहित शिवनाथ सिंह
जी के इन्तकाल के बाद पुत्र भैरूसिंह
जी की रियासत से नाराजगी
के बाद से यह पदवी कोटड़ी गांव के
पुरोहित हमीरसिंह जी को
मिली । इसके बाद इनके बड़े पुत्र
मोतीसिंह जी व उसके बाद स्व.
मोतीसिंह जी के बड़े पुत्र
श्री भंवरसिंह टिकाई है।
6. दादोजी का छटा पुत्र देवनदास जिसके बड़े बेटे
फल्लाजी का शासन गांव नहरवा दूसरे बेटे रामदेव
का पापासणी परगने जोधपुर में है फल्ला ने
फल्लूसर तलाब बनाया जिसको फज्जूसर भी कहते
है।
मारवाड़ एवं थली के अलावा किशनगढ़, ईडर,
अहमदनगर और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतो में भी
सेवड़ पिरोयतो के शासन गांव है।
यह जोधा तथा सूंडा राठोडो इके पिरोयत है । इनका कथन
है कि इनके पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे । इनके कथन के
अनुसार इनके बडेरे देपाल कन्नोज से राव सियाजी
के साथ आये थे। सियाजी ने इनको अपना पुरोहित
बनाया और वे मारवाड के पिरोयतो में सगपन करके इस कौम में
मिल गये ।
मारवाड़ में ज्यों ज्यों राठौड़ो का राज बढ़ता गया सेवड़ पिरोयतो को
भी उसी तरह ज्यादा से ज्यादा शासन
गांव मिलते रहे और उनकी औलाद भी
राठौड़ो के अनुसार बहुत फैली । आज क्या
जमीन, क्या आमदनी और क्या
जनसंख्या में सेवड़ पिरोयत कुल पिरोयतो से बढ़े हुये है।
देपाल जी से कई पुश्त पीछे
बसंतजी हुए । उनके दो बेटे
बीजड़जी और बाहड़जी
थे बीजड़जी मलीनाथ
जी के पास रहते थे । कंरव जगमाल
जी ने उनको बीच में देकर अपने काका
जेतमाल जी को सिवाने से बुलाया और दगा से मार
डाला । बीजड़जी इस बात से खेड़
छोड़कर बीरमजी के पास चले गये ।
राव चूंडाजी ने जब सम्वत् 1452 में मंडोर का राज
लिया तो उनकी या उनके बेटे हरपाल को गेवां बागां
और बड़ली वगैरा कई गांव मंडोर के पास-पास शान
दिये। बाहड़जी के कूकड़जी के
राजड़जी हुए जिनकी औलाद के शासन
गांव साकड़िया और कोलू परगने शिव में है। हरपाल के पांच बेटे
थे:-
1. रूद्राजी - इनके तीन बैटे
खींदाजी,
खींडाजी और कानाजी थे ।
खींदाजी के खेताजी,
खेताजी के रायमल, रायमल के पीथा
जी जिसकी औलाद में शासन गांव
बड़ली परगने जोधपुर है। रायमल का बेटा उदयसिंघ
था । उसके दो बेटे कूंभाजी और भारमल हुए ।
कूम्भाजी की औलाद का शासन गांव
खाराबेरा परगने जोधपुर में और भारमल की औलाद
का शासन गांव धोलेरया परगने जालौर में है।
खींडाजी की औलाद का
शासन गांव टूकलिया परगने मेड़ता में है। कानाजी
की औलाद में शासन गांव पाचलोडिया, चाँवणडिया,
प्रोतासणी और सिणया मेड़ता परगने के हैं।
2. दूसरा बेटा हरपाल का देदाजी,
जिसकी औलाद के शासन गांव बावड़ी
छोटी और बड़ी परगने
फलौदी, ओसियां का बड़ा बास और बाड़ा परगने
जोधपुर है।
3. तीसरा दामाजी । ये राव
रिड़मलजी के साथ चितौड़ में रहते थे । जिस रात कि
सीसोदियो ने रावजी को मारा और राव
जोधाजी वहां से भागे तो उनका चाचा
भीभी चूंडावत ऐसी
गहरी नींद में सोया हुआ था कि उसको
जगा-जगा कर थक गये मगर उसने तो करवट भी
नहीं बदली । लाचार उसको
वहीं सोता हुआ छोड़ गये । दामाजी
भी उनके पास रहा । दूसरे दिन
सीसोदियो ने भीम को पकड़ कर कतल
करना चाहा तो दामाजी ने कई लाख रूपये देने का
इकरार करके उसको छुड़ा दिया और आप उसकी
जगह कैद में बैठ गये । कुछ दिनों पीछे जब
सीसोदियो ने रूपये मांगे तो कह दिया कि मैं तो
गरीब ब्राह्मण हूं । मेरे पास इतने रूपये कहा ।
यह सुनकर सीसोदियो ने दामाजी को छोड़
दिया। जोधाजी ने इस बंदगी में चैत बद
15 सम्वत् 1518 के दिन गयाजी में उनको बहुत
बड़ा शासन दिया जिसकी आमदनी दस
हजार रूपये से कम नहीं थी ।
दामाजी के जानशीन तिंवरी
के पुरोहितजी कहलाते हैं। गांव तिंवरी
जोधपुर परगने के बड़े-बड़े गांवो में से एक नामी गांव
नौ कोस की तरफ है।
दामाजी पिरोयतो में बहुत नामी हुए हैं
और उनकी औलाद भी बहुत
फैली कि एक लाख दमाणी कहे जाते
हैं । यानि एक लाख मर्द औरत बीकानेर, मारवाड़,
ईडर, किशनगढ़ और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतों में सन् 1891
तक थे । इनके फैलाव की हद उत्तर
की तरफ गांव नेरी इलाके
बीकानेर जाकर खत्म होती है और
यही पिरोयतो के सगपन की
भी हद थी जिसके वास्ते मारवाड़ में
यह औखाणा मशहूर है ‘‘गई नैरी सो
पाछी नहीं आई बैरी’’ यानि
जो औरत नैरी में ब्याही गई फिर वह
पाछी नहीं आई क्योंकि जोधपुर से सौ
डेढ़ सौ कोस का फासिला है और इसी वजह से
पिरोयतो की औरतों में ढ़ीट लड़कियों को
नैरी में ब्याहने की एक
धमकी है। वे कही है कि तू जो
कहना नहीं करती है तो तुझको
नैरी में निकालूंगी कि फिर
पीछी नहीं आ सके ।
दामाजी के छः बेट े थे!
1. नाडाजी (ना औलाद) जिसने जोधपुर के पास
नाडेलाव तालाब बनाया ।
2. बीसाजी । इन्होंने
बीसोलाव तालाब खुदाया था । इसका बेटा
कूंपाजी और कूंपाजी के
तीन बेटे, केसूजी, भोजाजी,
और मूलराज जी । केसोजी
की औलाद में शासन गांव घटयाला परगने शेरगढ़ है।
भोजाजी की औलाद में शासन गांव
तालकिया परगना जेतारण है। मूलराज जी ने
मूलनायक जी का मन्दिर जोधपुर में और एक बड़ा
कोट गांव भैसेर में बनवाया जिससे वह भैसेर
कोटवाली कहलाता है। इनके बेटे पदम
जी के कल्याणसिंघ जी जिन्होने
तिंवरी में रहना माना । इनके बड़े बेटे रामसिंघ, उनके
मनोहरदास, उनके दलपतजी थे । ये बैशाख बद 9
सम्वत् 1714 को उज्जैन की लड़ाई में काम आये
जो शहजादे औरंगजेब और महाराजा श्री जसवंत
सिंह जी में हुई थी ।
दलपतजी के अखेराज महाराज श्री
अजीतसिंह जी के त्रिके में हाजिर रहे
।
अखेराज के सूरजमल, उनके रूपसिंघ, उनके कल्याणसिंघ,
उनके महासिंघ (खोले आये) महासिंघ के दोलतसिंघ, दोलतसिंघ के
गुमानसिंह जो आसोज सुदी 8 सं. 1872 को आयस
देवनाथ जी के साथ किले जोधपुर में नवाब
मीरखांजी के आदमियों के हाथ से काम
आये, उनके नत्थूसिंघ, उनके अनाड़सिंघ उनके भैरूसिंघ उनके
हणवतसिंघ जो अब तिंवरी के पिरोयत है। इनका
जन्म सं. 1923 का है। दूसरे बेटे अखेराज के
केसरीसिंघ जो अहमदाबाद की लड़ाई में
काम आये। इनके दो बेटे प्रताप सिंह, अनोपसिंघ थे । प्रतापसिंघ
की औलाद का शासन गांव खेड़ापा परगने जोधपुर है
जहां रामस्नेही का गुरूद्वारा है। अनोपसिंह
की औलाद का शासन गांव दून्याड़ी
परगने नागौर है। तीसरे बेटे अखेराज के जयसिंघ
की औलाद का शासन गांव जाटियावास परगने
बीलाड़ा है। चौथे बेटे महासिंघ के चार बेटे सूरतसिंह,
संगरामसिंह, लालसिंह, चैनसिह की औलाद का शासन
गांव खीचोंद परगना फलोदी है। पांचवे
बेटे विजयराज के बड़े बेटे सरदार सिंघ की आलौद
का शासन भेंसेर कोतवाली दूसरे बेटे राजसिंह
की औलाद का भेंसेर कूतरी परगने
जोधपुर, तीसरे और चौथे बेटे जीवराज
और बिशन सिंह की औलाद का आधा-आधा गांव
भावड़ा परगने नागौर शासन है। छटा बेटा महासिंघ का तेजसिंह
सूरजमल के खोले गया, सातवें बेटे फतहसिंघ का छटा बंट गांव
भावड़ा में है।
कल्याणसिंह के दूसरे बेटे गोयंददास जी औलाद का
शासन गांव ढडोरा परगने जोधपुर और तीसरे बेटे
रायभान की औलाद का शासन गांव भटनोका परगने
नागौर है।
मूलराज के दूसरे बेटे महेसदास की औलाद का
शासन गावं चाड़वास परगने सोजनत में है तीसरे बेटे
छताजी की औलाद का शासन गांव
धूड़यासणी परगने सोजत में हैं चौथे रायसल का
मालपुरया पगरने जेतारण परगने में हैं छोटे भानीदास
का गांव भेाजासर बीकानेर में है।
3. तीसरा बेटा दामाजी का
ऊदाजी जिसकी औलाद के शासन गांव
बिगवी और थोब परगने जोधपुर में है।
4. चौथा बेटा दामाजी का बिज्जाजी
जिसकी औलाद में शासन गांव घेवड़ा परगने जोधपुर,
रूपावास परगने सोजत और मोराई परगने जैतारण है।
5. दामाजी का पांचवा पुत्र पिरोयत
विक्रमसी यह जोधपुर के राव जोधाजी
के कंवर बीकाजी के साथ 01
अक्टूबर 1468 को जोधपुर से (बीकानेर) नये
राज्य को जीतने के लिए रवाना हुए इनका वंश
अपनी वीरता एवं शोर्य के लिए रियासत
बीकानेर के स्तम्भ रहे और इनको पट्टे में मिले
गांव इस रियासत में है। विक्रमसी का पुत्र
देवीदास 29 जून 1526 को जैसलमेर में सिंध के
नवाब से युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए
इनको इस वीरता एवं जैसलमेर पर अधिकार करने
के फलस्वरूप गांव तोलियासर एवं 12 अन्य गांव पट्टे में मिले
एवं पुरोहिताई पदवी मिली ।
देवीदास के पुत्र लक्ष्मीदास 12 मार्च
1542 को जोधपुर के राव मालदेव के बीच युद्ध में
काम आये बड़े पुत्र किशनदास को उनकी
वीरता के लिए थोरी खेड़ा गांव पटटे में
मिला जिनके पोते मनोहर दास ने इस गांव का नाम किसनासर रखा।
किसनदास के पुत्र हरिदास ने हियादेसर बसाया । सूरसिंह के
गद्दी पर बैठने के बाद तोलियासर के पुरोहित मान
महेश की जागीर जब्त
करली इसके विरोध में मान महेश ने गढ़ के समाने
अग्नि में आत्मदाह कर लिया जहां अब सूरसागर है इसके बाद
से तोलियासर के पुरोहितो से पुरोहिताई पदवी निकल
गई लगभग 1613 में यह पदवी कल्याणपुर के
पुरोहितो को मिली । हरिदास के
लिखमीदास व इनके गोपालदास व इनके पसूराम
जी हुए इनके पुत्र कानजी को आठ
गांव संवाई बड़ी, कल्याणपुर, आडसर,
धीरदेसर, कोटड़ी, रासीसर,
दैसलसर और साजनसर पट्टे में मिले इनके सात पुत्रों का वंश
अब भी इन गांवो में है। बीकानेर राज्य
के इतिहास में सन् 1739 में जगराम जी, सन्
1753 में रणछोड़ दास जी, सन् 1756 में जगरूप
जी, सन् 1768 में ज्ञान जी सन्
1807 में जवान जी, सन् 1816 में जेठमल
जी, सन् 1818 में गंगाराम जी व सन्
1855 में प्रेमजी व चिमनराम का
जीवन वीरता एवं शौर्य के लिए
प्रसिद्ध रहा है। कल्याणपुर के टिकाई पुरोहित शिवनाथ सिंह
जी के इन्तकाल के बाद पुत्र भैरूसिंह
जी की रियासत से नाराजगी
के बाद से यह पदवी कोटड़ी गांव के
पुरोहित हमीरसिंह जी को
मिली । इसके बाद इनके बड़े पुत्र
मोतीसिंह जी व उसके बाद स्व.
मोतीसिंह जी के बड़े पुत्र
श्री भंवरसिंह टिकाई है।
6. दादोजी का छटा पुत्र देवनदास जिसके बड़े बेटे
फल्लाजी का शासन गांव नहरवा दूसरे बेटे रामदेव
का पापासणी परगने जोधपुर में है फल्ला ने
फल्लूसर तलाब बनाया जिसको फज्जूसर भी कहते
है।
मारवाड़ एवं थली के अलावा किशनगढ़, ईडर,
अहमदनगर और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतो में भी
सेवड़ पिरोयतो के शासन गांव है।
प्रस्तुत करता:- महेन्द्रसिंह $ मंगलसिंह जी राजपुरोहित मनणा जसोल
9510951660
9510951660
अगर हमारा प्रयास आपको अच्छा लगे तो comments box में *जय श्री खेतेश्वर दाता री सा* जरूर लिखे।।
जय श्री रघुनाथ जी री सा
हमारा प्रयास आपको अच्छा लगे तो कमेंट बॉक्स में जय श्री खेतेश्वर दाता री सा जरूर लिखे सा
हमारा प्रयास राजपुरोहित समाज में एकता लाना है सा और नई नई जानकारी मिलती हैं।और आपस में भाईचारा और प्रेम भाव बढाने का उद्देश्य है हमारा जो संत श्री श्री १००८ संत श्री खेताराम जी महाराज जी ने हम राजपुरोहित समाज को जो उपदेश देके गए हैं कि राजपुरोहित के घर बकरी नहीं रखना है , और आपस मैं भाईचारा कायम रखना है हमारा उद्देश्य भी यही है बस आप सभी का साथ चाहिए क्युकी आपका साथ ही हमारा हौसला है
सबका साथ सबका विकास
जय श्री खेतेश्वर दाता री सा
जय श्री रघुनाथ जी री सा
हमारा प्रयास आपको अच्छा लगे तो कमेंट बॉक्स में जय श्री खेतेश्वर दाता री सा जरूर लिखे सा
हमारा प्रयास राजपुरोहित समाज में एकता लाना है सा और नई नई जानकारी मिलती हैं।और आपस में भाईचारा और प्रेम भाव बढाने का उद्देश्य है हमारा जो संत श्री श्री १००८ संत श्री खेताराम जी महाराज जी ने हम राजपुरोहित समाज को जो उपदेश देके गए हैं कि राजपुरोहित के घर बकरी नहीं रखना है , और आपस मैं भाईचारा कायम रखना है हमारा उद्देश्य भी यही है बस आप सभी का साथ चाहिए क्युकी आपका साथ ही हमारा हौसला है
सबका साथ सबका विकास
जय श्री खेतेश्वर दाता री सा
जय श्री रघुनाथजी री सा
ReplyDeleteजय श्री गुरुदेव जी खेताराम जी महाराज जी री सा
जय श्री रघुनाथ जी की सा हुकूम
ReplyDeleteजय श्री गुरुदेव ब्रह्मऋषि श्री खेतेश्वर महाराज जी की सा हुकूम
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दिल से आपका आभार