*राजपुरोहित समाज ब्राह्मणों का त्याग और बलिदान का सबसे स्पष्ट और पॉवरफुल इतिहास*
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*Hostory Of Brahman Rajpurohit Samaj=* में अगर अपना प्रमाण पत्र देखू, तो उसमे राजपुरोहित लिखा गया है। यधपि मारवाड़ आंचल के भाग इस वर्ग के बारे में कम लोग ही जानते हैं। तो में आपको इस वर्ग का ऐतिहासिक परिपेक्ष में जाकर जानकारी देना चाहता हूं। यधपी जिस वर्ग मे में जन्मा हूं, तो बताता हूं, हां मे राजपुरोहित हूं। ब्राह्मण वर्ग में जन्म लिया। युद्ध जैसे क्षत्रीयोशित कर्म भी किए। एक अनोखी जाती हूं, जिसमें ब्राह्मण के गुण और क्षत्रियों के कर्म दोनों स्थापित हैं।
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खान-पान में मांस -मदिरा से सदा दूर रहता हूं, पर मारवाड़ में ऐसा कोई युद्ध नहीं लड़ा गया, जिसमें मेरी सहभागीता नहीं रही हो, गांव-गांव में प्यारे मारवाड़ के लिए लड़ा-कटा, मरा में, कभी गौ माता की रक्षा के लिए कभी नारी के सम्मान के लिए, शायद ही ऐसा कोई गांव हो जिसमे मेने मामाजी और सती के रूप में सत्य एवं न्याय कि रक्षा के हेतू, अपने प्राणों सर्ग ना किए हो, में कभी राजा तो नहीं रहा, लेकिन राठौड़ सता जोधपुर में स्थापित हुई, उसमे मेरा योगदान रहा है। जो आज भी स्वर्णीम अक्षरों में अंकीत है। राठौड़ो के आदीपुरूष राव सिंहजी के साथ राजपुरोहित देवपालजी बनकर आया। जिसका राठौड़ सता स्थापन में योगदान रहा। कभी प्रतापसिंह बनकर गिरी सुमेल के युद्ध में अप्रतीम सोर्य दिखाकर राव मालदेव का माथा ऊंचा किया। कभी दलपत सिंह बनकर धर्मत का युद्ध ओरंगजेब के खिलाफ लड़ा, जिस प्रकार में लड़ा उसको याद करके तत्कालीन महाराज जसवंतसिंह जी भी फुट-फुट कर रोए। कभी केसरसिंह बनके अहमदाबाद युद्ध में मारवाड़ की ओर से लड़ते हुए महाराज अभयसिंहजी को विजय श्री दिलवाई। कभी गुमानसिंह बनकर राजा मानसिंह के प्राण बचाएं। उन पर चले वार को खुद के उपर लेकर प्राण त्याग दिए, लेकिन मारवाड़ का मान कायम रखा। कभी बीकानेर में वीर जगराम जी बनकर बीकानेर की रक्षा की।
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इसके बाद वहां के राज परिवार का विवाह मेरे आशीर्वाद लेकर ही संपन्न होता है। वैदिक काल की बात करे, तो मैने ब्रह्मवंशी दधीचि बनकर संसार की रक्षा हेतु अपनी हड्डियां तक दान दे दी। कभी परशुराम बनकर आतितायो का संगार किया। और अहंकार में मधमय में क्षुर राज वंशियो को मर्यादा का भान कराया। कभी द्रोणा बनकर पांडवो को धर्म की स्थापना के लिए शिक्षित किया। फिर हजारों साल तक निर्धन रहा। भूखा -प्यासा रहा लेकिन सनातन की रक्षा के लिए वेदपुराण गा-गा कर सुनाता रहा,पर धर्म को जिवित रखा। फिर मध्यकाल के कालखंड में मेने चाणक्य बनकर अहंकार में डूबे धनानंद को पद चिद्घित कर चन्द्रगुप्त जैसे बालक को पदाचित किया।
और तभी मेरी सीखा खुली।
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सरक संहिता और सूचुक संहिता जैसी पुस्तके मेने लोक कल्याण हेतु रची। जब मेरा इतिहास देखोगे, तो केवल और केवल त्याग दिखेगा। पाली की रक्षा हेतु पालीवाल बनकर लड़ा- मरा में पर स्वाभिमान पर आंच न आने दी। कभी अन्याय के विरूद्ध मैने एक क्षण में कुलधरा के 84 गांव त्याग दिए थे। मेने अपने मारवाड़ के प्रति कभी द्रोह नहीं किया, गद्दारी नहीं की। अभी भी आश्यकता आन पड़ी, तो में प्राण तक देने के लिए तत्पर रहूंगा। मेरे खून में केवल त्याग और त्याग है।
*जय जय श्री परशुराम जी री सा*
*जय श्री गुरुदेव जी खेताराम जी महाराज जी री सा*
*Audio,video= Vikramsinghji Rajpurohit leta &*
*Wrriter= ब्राह्मण हिन्दू* *महेन्द्रसिंह राजपुरोहित मनणा जसोल*
*7621931486*
*जय जय श्री परशुराम जी महाराज जी री सा*
*जय श्री गुरुदेव जी खेताराम जी महाराज जी री सा*
हमारा प्रयास आपको अच्छा लगे तो कमेंट बॉक्स में जय श्री खेतेश्वर दाता री सा जरूर लिखे सा
हमारा प्रयास राजपुरोहित समाज में एकता लाना है सा और आपस में भाईचारा और प्रेम भाव बढाने का उद्देश्य है हमारा जो संत श्री श्री १००८ संत श्री खेताराम जी महाराज जी ने हम राजपुरोहित समाज को जो उपदेश देके गए हैं कि राजपुरोहित के घर बकरी नहीं रखना है , और आपस मैं भाईचारा कायम रखना है हमारा उद्देश्य भी यही है बस आप सभी का साथ चाहिए क्युकी आपका साथ ही हमारा हौसला है
सबका साथ सबका विकास
जय जय श्री परशुराम जी महाराज जी री सा
जय श्री खेतेश्वर दाता री सा
जय श्री खेतेश्वर दाता री सा
जय जय श्री परशुराम जी महाराज जी री सा
ReplyDeleteजय जय श्री खेताराम जी महाराज जी री सा