जय श्री गणेशाय नमः जय श्री जोगमाया मां जय श्री चामुण्डा मां जय श्री खेतेश्वर दाता नम: जय श्री ब्रह्मदेव नम:
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ:!
निर्विग्नम् कुरूमेदेव सर्वकार्येशु सर्वदा:!!
मित्रों में आपको आज दुदावत राजपुरोहितों का इतिहास बता रहा हूं सा आपको अगर अच्छा लगे तो कमेंट बॉक्स में जय श्री खेतेश्वर दाता री सा जरूर लिखे।
(१.)
*दुदावत राजपुरोहितों का गौरवशाली इतिहास*
(*History of Dudawat Rajpurohit page no.98.*)
*पाली राज्य का इतिहास*
(History of Pali state)
(जय श्री रघुनाथ जी री सा)
...; सांचौर परगने का गांव अरकाय पूर्व में उनकी जागीर में था, जहां उनके द्वारा निर्मित आम जन के लिए पानी पीने हेतु निर्माण करवाया गया कुंआ आज भी विद्यमान हैं।
किसी कारण वश में उस स्थान को छोड़कर (तिरस्कार कर) श्रीमालनगर (भीनमाल) आ गए, और अपने वंशजों को भी वहां नहीं जाने का परामर्श दिया अथार्थ उस स्थान को वर्जित स्थान *काला गांव* करार दिया।
जब युवा दूदाजी की विद्वता, युद्ध कौशल, घोड़ों की पारखी (इस विद्या ने निपुणता) होने की ख्याति दूर - दूर तक फैली तो कुछ पंडित श्रीमालियो को ईर्ष्या होने लगी।
(Allrrajpurohitsamaj.blogspot.com)
एक बार दूदाजी को मेवाड़ के राणा मोकलजी के निमंत्रण पर वहां जाना पड़ा और अश्वविद्या की विशेष जानकारी वहां देने पर उन्हें पारितोषिक स्वरूप घोड़े भी भेंट किए गए,उनको लेकर वे घर लौटे।
ईर्ष्या वश तब यहां के ब्राह्मण - पण्डितो ने उन पर घोड़े चुराकर लाने का आरोप लगा दिया और ऐसी विद्या और कार्य को पंडितो के प्रतिकूल करार देकर उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया।
इस पर दूदाजी ने अपनी शुर वीरता का परिचय देते हुए भीनमाल (श्रीमालनगर) के lआसपास की बहुत बड़ी जागीर अपनी शक्ति के बल पर हठिया लिया और आसपास लोगो - क्षत्रपों ने उन्हे पुरोहित (राजपुरोहित) करार दे दिया।
उन्हीं दिनों उनकी राजनैतिक शक्ति देखकर एक बार पालनपुर राज्य के दीवान की सेना जब उनके पास से जालोर पर आक्रमण करने जा रही थी तो दूदाजी ने उन्हें विश्राम और भोजन आदि करने का निमंत्रण दे दिया। सेनापति ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया,इससे दुदाजी की मान्यता एवं राजनैतिक शक्ति और भी बढ़ गई।
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दूदाजी के पुत्रों ने भीनमाल नगर के पास ही अपने जागीर के गांव बसा दिए जिनमें रूपजी ने रोपसी ,आलजी ने आलड़ी,सांवलाजी ने सांवलावास, कोडाजी ने कोडी, खांडाजी ने खांडा देवल,कलाजी ने कारलू, मनाजी ने मनोहरजी का वास सांगाजी का माविधर रहे।
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एक प्रसंग में सांगा (दूदाजी के अति साहसी पुत्र) के जोधपुर की सेना के प्रशिक्षण सिविर के पास से जाना हुआ। सांगा जी को ये ज्ञान नहीं था कि इस क्षेत्र से गुजरना वर्जित है। इस पर जब परिचय स्वरूप दूदाजी पुरोहित का पुत्र होना बताया तो वस्तूतः उद्यांटता की सजा के निमित परन्तु सामान्यतया अपने वीर पिता दुदा के पुत्र की परीक्षा के नाते सांगा को महाराजा जोधपुर के हाथी से लड़वाया गया। अपनी तीक्षण बुद्धि से हाथी की सूंड पर चढ़ कर मुष्ठिका से हाथी के मस्तिष्क में चोट पहुंचाकर हाथी को गिरा दिया तब जोधपुर महाराज ने वीरता से प्रसन्न होकर पुरस्कार स्वरूप सांगरिया की जागीर प्रदान की। बाद में यथोचित सेवा देने पर स्थान की जागीर दी जिसे सांगा ने दूदा जी का वाड़ा का नाम दिया।
(अजित, रेल्वे स्टेशन, आज भी उसकी सरहद में स्थित है!)
*History page= Mahendrasinghji Moolrajot Rajpurohit*
*9840654779*
*History Wrriter= ब्राह्मण हिन्दू महेन्द्रसिंह $ मंगलसिंह जी राजपुरोहित मनणा जसोल*
*7621931486*
*Website=(Allrrajpurohitsamaj.blogspot.com)*
(२.)
जय श्री गणेशाय नमः जय श्री जोगमाया मां जय श्री चामुण्डा मां जय श्री खेतेश्वर दाता जय श्री ब्रह्मदेव नम:
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ:!
निर्विग्नम कुरूमेदेव सर्वकार्येशु सर्वदा:!!
*दुदावत राजपुरोहितों का गौरवशाली इतिहास*
(*History of Dudawat Rajpurohit*)
*पाली राज्य का इतिहास*
(History of Pali state)
*पालीवाल - राजपुरोहित: गौत्र एवं वंशावली*
(History of Gotra & Vanshavali Palival Rajpurohit)
(जय श्री रघुनाथ जी री सा)
...; क्योंकि जोधपुर रेल्वे स्टेशन बनने पर पोकरण के चंपावत राठौड़ों की जागीर में अजित था और पोकरण ठिकाना बड़ा था। दूदाजी का परिवार अब राजसत्ता से दूर था। इसका अन्य उदाहरण मोकलसर रेल्वे स्टेशन है,जो मायलावास सोढ़ा राजपुरोहितों की जागीर का गांव है उसकी सरहद में बना हुआ हैं परन्तु मोकलसर (बालावत) राठौड़ों के पाटवी जागीर होने से रेल्वे स्टेशन का नाम मायलावास पुरोहितान न होकर मोकलसर है। ऐसा ही उदाहरण बाकरा रोड़ रेल्वे स्टेशन है जो मडगांव की सरहद में बना हुआ हैं परन्तु चंपावत राठौड़ों का बड़ा ठिकाना बाकरा नजदीक होने से बाकरा रोड़ नाम रखा गया था। दुदाजी की संताने आगे कुंवारडा, आराबा आदि स्थानों पर है।
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यह भी कहा जाता है उनके तीन विवाह हुए थे और कुल 15 संताने थी। एक विवाह पालीवाल (गुंदेचा) मादा के जागीरदार की विदुषी पुत्री से हुआ था जो उनके कुलदेव मंगलेश्वर महादेव की उपासिका थी और विवाह के बाद दूदाजी के घर अपने ससुराल आते समय मंगलेश्वर की मूर्ति भी साथ लेकर आई थी तथा अलग से बस्ती बनाई गई थीं जो रूपनगर कहलाता था जो बाद में उनके पुत्र रूपा के नाम से रोपसी (रूपश्री) कहलाता हैं। यहां भी मंगलेश्वर महादेव की स्थापना की गई जो आज भी गुंदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है क्योंकि रूपजी की माता गुंदेचा (पालीवाल) गौत्र की थी।
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इस प्रकार वीर दूदाजी का पालीवाल से संबंध बना है। जबकि मारवाड़ राज्य की मर्दुमशुमारी (जनगणना) जो सन 1891 में हुई थी उसमें पुरोहित राजपुरोहितो का अपुष्ट, असंयमित एवं भ्रामक व त्रूटीपूर्ण उल्लेख हुआ है।उसमें दूधा पिरायत संख्या - 9 पर दूदाजी का वर्णन उचित नहीं है। इस विवरण में दुदावतो की खांपे जो 17 बताई है उसमे संखवालचा, रायथला, पोदरवाल, रूदवा, केदारिया, व्यास बताया है जो प्रमाणिक नहीं लगती।
*History page= Mahendrasinghji Moolrajot Rajpurohit*
*9840654779*
*History Wrriter= ब्राह्मण हिन्दू महेन्द्रसिंह $ मंगलसिंह जी राजपुरोहित मनणा जसोल*
*7621931486*
*Website=(Allrrajpurohitsamaj.blogspot.com)*
(३.)
जय श्री गणेशाय नमः जय श्री जोगमाया मां जय श्री चामुण्डा मां जय श्री खेतेश्वर दाता जय श्री ब्रह्मदेव नम:
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ:!
निर्विग्नम कुरूमेडेव सर्वकार्येशु सर्वदा:!!
*दुदावत राजपुरोहितों का गौरवशाली इतिहास*
(History of Dudawat Rajpurohit)
*पाली राज्य का इतिहास*
(History of Pali state)
*वीर दूदाजी (दुदावतो के प्रथम पुरुष) एवं दुदावत पुरोहित:*
(History of Veer Dudaji (Dudawat of First men) & Dudawat Purohit)
(जय श्री रघुनाथ जी री सा)
श्रीमालनगर (भीनमाल) की स्थापना और वहां के रहने वाले शासक ब्राह्मण परिवारों को श्रीमाली ब्राह्मण नाम से संबोधन मिला जिसका सम्पूर्ण विस्तृत विवरण श्रीमालपुराण में भली - भांति दिया गया है।
उन्हीं प्रसिद्ध श्रीमाली ब्राह्मणों के एक अगुआ विद्वान पण्डित केशरदेव थे। उनके एकमात्र पुत्री भाग्यवंती देवी का जन्म होने पर बहुत खुशी मनाई गई थी। पण्डित केशरदेव हनुमान भक्त थे एवं ज्ञानदान - विद्यादान में ज्यादा रुचि रखते थे। अपनी भक्ति हनुमान जी के प्रति होने से गृहस्थ में समय कम ही बिताते थे।
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परिवार में इस विद्वान के आगे कुल (वंश) वाहक पुत्र नहीं होने से पुत्री भाग्यवंती एवं उसकी माता पंडिताइन (पं.केशरदेव की पत्नी) ने शिवोपासना (दुदेश्वर महादेव की भक्ति) कर वंशवृद्धि हेतु याचना की जिससे वृधावस्था में भी एक देदीप्यमान पुत्र पैदा हुआ जो इतिहास में वीर दूदाजी के नाम से प्रसिद्ध योद्धा हुआ ,साथ ही अनेक विद्याओं का ज्ञाता भी हुआ। एक हाथ में वेद और दूसरे हाथ में शस्त्र के धारक दूदा के वंशज दुदावत पुरोहित कहलाते है।पण्डित केसवदेव का विवाह जुंजाणी भीनमाल क्षेत्र के राजपुरोहित परिवार में हुआ था।
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दूदा जब एक वर्ष से भी कम उम्र का था,उसके पिता केशवदेव देवलोक गमन कर गए। बड़ी श्रद्धा एवं लगन से धर्म परायण माता ने इस बालक का पालन - पोषण कर योग्य बनाया। पण्डित केशरदेव के पिता.दादा भी शास्त्र एवं वेदों के परम ज्ञाता थे।
*History page= Mahendrasinghji Moolrajot Rajpurohit*
*9840654779*
*History Wrriter= ब्राह्मण हिन्दू महेन्द्रसिंह $ मंगलसिंह जी राजपुरोहित मनणा जसोल*
*7621931486*
*Website=(Allrrajpurohitsamaj.blogspot.com)*
जय श्री रघुनाथ जी री सा
जय श्री महर्षि परशुराम जी री सा
जय श्री गुरुदेव जी खेताराम जी महाराज जी री सा
जय श्री ब्रह्मदेव नम: